कहे कबीर

कृष्ण और रोमियो

डॉ. सुभाष खंडेलवाल

हे भारत माता मुझे राम की मर्यादा, कृष्ण का हृदय और शिव सा मस्तिष्क दे।

कृष्ण और रोमियो दोनों ही प्यार का पैगाम हैं। राधा और जूलियट प्यार की सौगात हैं। फर्क इतना है कि कृष्ण और राधा परलोक हैं, देवीय हैं और रोमियो-जूलियट इहलोक हैं, सांसारिक हैं। डॉ. लोहिया ने कभी कहा था कि हे भारत माता मुझे राम की मर्यादा, कृष्ण का हृदय और शिव सा मस्तिष्क दे। उन्होंने कहा था मुझे नहीं मालूम राम, कृष्ण, शिव हुए या नहीं, लेकिन इस देश के करोड़ों लोगों के चहरों पर इनका नाम लेने से जो चमक आती है, वो देने की मेरे पास कोई और सूरत नहीं है। दयानंद सरस्वती ने बचपन में गणेशजी की मूर्ति के आगे रखे लड्डू को चूहे को खाते हुए देखकर मूर्तिपूजा के विरोध में पूरे भारत वर्ष में आर्य समाज खड़ा कर दिया। कबीर ने तो लिखा कि– काकड़ पत्थर जोड़कर मस्जिद ली चिनाय ता उपर बैठा मुल्ला बाग दे क्या बैरा हो गया खुदाय। मूंड मुडाये हरि मिले तो हर कोई ले मुडाय, बार-बार के मुडते भेड ना बैकुंठ जाय। और पत्थर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़। आज ऐसा बोलना तो ठीक, सोचने में भी दिक्कत आ रही है। हमारे देश में सदियों से अस्तिक, नास्तिक, आकार, निराकार, साकार, मूर्ति भंजक, मूर्ति पूजक, ब्रह्म, परम ब्रह्म सभी को आदर दिया गया है। ये आजादी के बाद का नया दौर है। इसमें रोमियो और कृष्ण नफरत का पैगाम हैं, राधा और जूलियट नफरत की सौगात हैं। शब्दों के अर्थ बदल रहे हैं, ये अल्पकालीन हैं, क्योंकि अंधकार के बाद रोशनी का आना तय है। प्यार अमर है। कृष्ण अमर है।